परिचय
डिजिटल क्रांति ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को आधुनिक समाज और अर्थव्यवस्था का केंद्रीय आधार बना दिया है। परंतु इसके साथ ही साइबर अपराधों का स्वरूप अत्यधिक जटिल, अदृश्य और अंतरराष्ट्रीय हो गया है। एआई-सक्षम अपराध पारंपरिक साइबर अपराधों की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण हैं, क्योंकि इनमें तकनीक की गति और स्वचालन का व्यापक प्रयोग होता है।
भारतीय कानून में खामियां
भारत का प्रमुख विधिक ढांचा, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, केवल पारंपरिक साइबर अपराधों जैसे हैकिंग, डेटा चोरी या फिशिंग तक सीमित है। वर्तमान कानून में एआई-आधारित अपराध—जैसे डीपफेक वीडियो, एल्गोरिदमिक हैकिंग, स्वचालित फिशिंग हमले, या बॉट-आधारित वित्तीय धोखाधड़ी—के लिए कोई स्पष्ट परिभाषा या विशेष प्रावधान नहीं हैं। साथ ही, सीमा-पार डिजिटल अपराधों का पीछा करने के लिए भारतीय प्रवर्तन एजेंसियों के पास पर्याप्त तकनीकी संसाधन और विशेषज्ञता का अभाव है।
नीतिगत आवश्यकताएँ
एक समग्र नीति की आवश्यकता है, जिसमें एआई-सक्षम अपराधों की स्पष्ट कानूनी परिभाषाएँ, दायित्व निर्धारण तंत्र, अंतरराष्ट्रीय सहयोग की रूपरेखा, न्यायिक और प्रवर्तन एजेंसियों के लिए क्षमता निर्माण, तथा उन्नत तकनीकी प्रशिक्षण शामिल हो।
निष्कर्ष
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और डिजिटल संप्रभुता को सुदृढ़ करने के लिए पारंपरिक कानून अब पर्याप्त नहीं हैं। एआई-सक्षम साइबर अपराधों से निपटने हेतु अद्यतन और अंतरराष्ट्रीय मानकों से जुड़ी नीतियाँ ही प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती हैं।
– अमन मिश्रा ( साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ एवं अनुसंधान छात्र )

